फिल्म सफेद ,एक विधवा और किन्नर के एकाकी और परित्यक्त जीवन की कहानी

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सफेद :-जिंदगी बेरंग

संदीप सिंह के द्वारा लिखित ,निर्देशित और निर्मित 2023 की भारतीय भाषा की ड्रामा फिल्म हैं । इस फिल्म में मीरा चोपड़ा , अभय वर्मा ,बरखा बिष्ट और जमील खान ने अभिनय किया हैं । आलोचकों की नकारात्मक समीक्षाओ के साथ इस कहानी का प्रीमियर 29 December 2023 को हुआ था ।

आधार :-

फिल्म एक विधवा और किन्नर के एकाकी और परित्यक्त जीवन के इर्द – गिर्द घूमती हैं जो समाज की अस्वीकृति के बावजूद एक दूसरे के साथ खुशी -खुशी रहना पसंद करते हैं ।

अभिनय :-

  •  मीरा चोपड़ा :- काली के रूप में
  • अभय वर्मा :- चाँदनी
  • बरखा बिष्ट :- राधा
  • छाया कदम :- अम्मा के रूप में
  • जमील खान :- गुरु मां

संगीत :-

 

             शीर्षक                                       बोल                                                        गायक /गायिका

“भुला देना”                     सोहम मजूमदार                                        शुभंकर डे

“रोना आया”                          महबूब                                                 सोनू निगम

“रंग रसिया”                     महिमा भारद्वाज                                        शिल्पा राव

“गीला कर्ण”                         मोहन जुटली                                        जेजीम शर्मा

     एक किन्नर और एक विधवा की कहानी , कहानी कहने से लेकर अभिनय तक

मीरा चोपड़ा ने काली नामक एक विधवा और अभय वर्मा ने चाँदनी नामक एक किन्नर की भूमिका निभाई हैं , ( जिसके बारे में निर्माताओं का कहना हैं कि यह एक सच्ची कहानी पर आधारित हैं ) समाज उन दोनों के इर्द -गिर्द घूंट हैं जो अकेले जीवन जीते हैं , जब तक की वे एक दूसरे से मिलते नहीं हैं और एक दूसरे में सांत्वना खोजने की कोशिश नहीं करते हैं । मैंने इसमे ” कोशिश ” इसलिए लिखा हैं क्योंकि दर्शक भी पात्रों को महसूस करने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन समाज का रूढ़िवादी प्रतिनिधित्व दर्शकों को निराश करता हैं चाल -चलन ,बोलने का तरीका , गली -गलोच क्या? निर्देशक संदीप सिंह हकीकत में यही सोचते हैं कि ट्रांसजेंडर क्या हैं ?किन्नरों के मुखिया की भूमिका निभाने वाले जमील खान अच्छे हैं । लेकिन एक बार फिर से वह सिंह की साजिश में उलझ गए ।

अपनी लैंगिक पहचान को स्वीकार करना एक बहुत  ही जोशपूर्ण द्रश्य माना जाता हैं

निर्देशक ने कहानी को हमारे दिल को छूने वाला बनाने की पूरी कोशिश की हैं लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया । वर्मा जिन्हे एक दमदार भूमिका मिली हैं जो अच्छे हैं । यह एक मुश्किल भूमिका हैं , वे किरदार को दिलचस्प बनाए रखने में कामयाब होते हैं । अपने प्यार द्वारा ठुकराए जाने के बाद अपनी लैंगिक पहचान को स्वीकार करना एक बहूत ही जोशपूर्ण काम माना जाता हैं । लेकिन इसमे चमक की कमी  सिंह  के औसत निर्देशन और एक अभिनेता के रूप में वर्मा की कमी के कारण नजर आती हैं ।

यह प्रेम कहानी केसे शुरू होती हैं

चोपड़ा , कहानी से सीमित समर्थन के साथ ,वर्मा के चरित्र के प्रति अपने लगाव को व्यक्त करने मे सक्षम नहीं हैं । दोनों के द्रश्य  बताते हैं कि ये प्रेम कहानी कैसे शुरू होती हैं ।

अभिनेत्री बरखा सेन गुप्ता एक किन्नर के रूप मे फिट नहीं बेठती हैं क्योंकि वह किरदार मे बखूबी ढल नहीं पाती  हैं और उसे विश्वसनीय नहीं बना पाती हैं । वह अपने शुरुआती शूट से लेकर क्लाईमेक्स तक , जहा उन्हे पूरी तरह से टूट हुआ दिखाया गया हैं , चाँदनी (वर्मा का किरदार ) को सांत्वना देते हुए , अपने अभिनय को और भी बढ़ा देती हैं ।

सफेद :- कोई रंग नहीं (बे रंग )

फिल्म के इरादे सही हैं , लेकिन एस लगता है कि देश के कुछ हिस्सों मे ट्रांसजेंडर और विधवाओ की जिंदगी जिस तरह की हैं , वह वाकई एक एसा विषय हैं जिसे एक अनुभवी निर्देशक के हाथों में बेहतर ढंग से पेश किया जा सकता था । हालांकि यह कोशिश शीर्षक में ही सटीक हैं ।

सफेद :- बे रंग

 

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